Sunday, 28 December 2014

स्वामी विवेकानंद एक बार कहीं जा रहे थे। रास्ते में नदी पड़ी तो वे वहीं रुक गए क्योंकि नदी पार कराने वाली नाव कहीं गई हुई थी। स्वामीजी बैठकर राह देखने लगे कि उधर से नाव लौटे तो नदी पार की जाए।
एका-एक वहां एक महात्मा भी आ पहुंचे। स्वामीजी ने अपना परिचय देते हुए उनका परिचय लिया। बातों ही बातों में महात्माजी को पता चला की स्वामीजी नदी किनारे नाव की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
महात्मा जी बोले, अगर ऐसी छोटी-मोटी बाधाओं को देखकर रुक जाओगे तो दुनिया में कैसे चलोगे? तुम तो स्वामी हो, बड़े आधात्यात्मिक गुरु और दार्शनिक माने जाते हो। जरा सी नदी नहीं पार कर सकते? देखो, नदी ऐसे पार की जाती है।
महात्मा जी खड़े हुए और पानी की सतह पर तैरते हुए लंबा चक्कर लगाकर वापस स्वामी जी के पास आ खड़े हुए। स्वामीजी ने आश्चर्य चकित होते हुए पूछा, महात्माजी, यह सिद्धि आपने कहां और कैसे पाई?
महात्मा जी मुस्कुराए और बड़े गर्व से बोले, यह सिद्धि ऐसे ही नहीं मिल गई। इसके लिए मुझे हिमालय की गुफाओं में तीस साल तपस्या करनी पड़ी।
महात्मा की इन बातों को सुनकर स्वामी जी मुस्करा कर बोले, आपके इस चमत्कार से मैं आश्चर्यचकित तो हूं लेकिन नदी पार करने जैसे काम जो दो पैसे में हो सकता है, उसके लिए आपने अपनी जिंदगी के तीस साल बर्बाद कर दिए।
यानी दो पैसे के काम के लिए तीस साल की बलि ! ये तीस साल अगर आप मानव कल्याण के किसी कार्य में लगाते या कोई दवा खोजने में लगाते, जिससे लोगों को रोग से मुक्ति मिलती तो आपका जीवन सचमुच सार्थक हो जाता।

Sunday, 14 December 2014

पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया, जब दूध ने
पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा,मित्र तुमने अपने स्वरुप
का त्याग कर मेरे स्वरुप को धारण किया है अब मैं
भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल बिकवाऊंगा, दूध
बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है अब
मेरी बारी है मै मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै
चला जाऊँगा और दूध से पहले पानी उड़ता जाता है जब दूध मित्र
को अलग होते देखता है तो उफन कर गिरता है और आग को बुझाने
लगता है, जब पानी की बूंदे उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से
मिलाया जाता है तब वह फिर शांत हो जाता है पर इस अगाध
प्रेम में थोड़ी सी खटास (निम्बू की दो चार बूँद ) डाल दी जाए
तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं थोड़ी सी मन की खटास अटूट्
प्रेम को भी मिटा सकती है!

Saturday, 13 December 2014



बलात्कार की शिकार एक लड़की अपने माँ से कुछ कह रही है,........
माँ मुझे छुपा लो बहुत डर लगता है,
माँ तुझे याद है तेरे आँगन में चिड़िया सी फुदक रही थी।
ठोकर खा के मै जमीन पर गिर रही थी,
दो बूँद खून की देख के माँ तू भी रो पड़ती थी।
माँ तूने तो मुझे फूलों की तरह पाला था,
उन दरिंदों का आखिर मैंने क्या बिगाड़ा था।
क्यूँ वो मुझे इस तरह मसल कर चले गए,
बेदर्द मेरी रूह को कुचल कर चले गए।
माँ तू तो कहती थी कि अपनी गुडिया को मै दुल्हन बनाएगी,
मेरे इस जीवन को खुशियों से सजाएगी।
माँ क्या वो दिन जिन्दगी कभी ना लाएगी,
माँ क्या तेरे घर अब बारात न आएगी।
माँ खोया है जो मैंने क्या फिर से कभी न पाऊँगी,
माँ सांस तो ले रही हूँ क्या जिन्दगी जी पाऊँगी।
माँ घूरते हैं सब अलग ही नज़रों से,
माँ मुझे उन नज़रों से छुपा ले,
माँ बहुत डर लगता है मुझे अपने आँचल में छुपा ले।
मित्रो क्या लड़की होना अभिशाप हो गया आज ...?
क्या बलात्कारी ये भी नहीं सोचते की उनके भी बहिने है .....?
इनको कैसी सजा मिले ....?
इसको शेयर अवश्य करे ताकि कोई भी किसी लड़की को अपनी हवस का शिकार ना बनाए.....Plz like this page